Thursday 15 September 2011

To, Hetal Mahendrakumar Sangani: में यह सोच कर उठा तेरे दर से!...........

में यह सोच कर उठा तेरे दर से!
तू बाह पकड़ के मना लेगी मुजको!!

वोह लहराया था दामन कुछ इस तरह से हवा में!
तू दामन से पकड़ कर बिठा देगी मुजको!!

कुछ आई थी आहट ऐसे लगा की!
तू पीछे से आकर रोक लेगी मुजको!!

पर ना, आवाज दी, ना मुजको मनाया!
ना दामन से पकड़ कर मुजको बिठाया!!

ना बाह पकड़ कर रोका मुजको!
में बस यु ही बढ़ता चला आया!!

में बस यु ही बढ़ता चला आया!
की आज तुमसे बिछड़ गया हु!!

में यह सोच कर उठा तेरे दर से!.......

સોરી ચકી, આજે હું મારી જાત પર કાબુ નથી રાખી શક્યો. એક્ચ્યુલી, આજે તું મને બહુ યાદ આવે છે....
I really miss you too much dear. કાશ, તું સમજી શકતે.!!!!!


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